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भारत में जातीय व्यवस्था

   
प्राचीन भारत में जातीय व्यवस्था नहीं
उसकी जगह पर वर्ण व्यवस्था थी चार वर्ण थे क्षत्रिय, शुद्र, ब्राह्मण,
जो कि उनके काम पर आधारित थी
 क्षत्रिय का काम देश की रक्षा करना था
उसी तरह ब्राह्मण का काम पूजा विधान करना था
उसी तरह वैश्यौ का काम व्यवसाय करना था
और शूद्र अन्य मेहनती काम क्या करते थे
वहां पर क्योंकि प्राचीन काल में स्कूल और कॉलेज थे नहीं तो यह सारी विधाएँ पुत्र अपने पिता से सीखने लगा इसी तरह एक सुनार का पुत्र सुनार बना, लोहार का पुत्र लोहार बना, ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण बना

परंतु मुख्य समस्याएं तब प्रारंभ हुई जब उन्होंने अपने आप को एक दूसरे से ऊपर दिखाना प्रारंभ कर दिया जैसे सुनार ने अपने आप को लोहार से ऊपर दिखाया, ब्राह्मण ने अपने आप को शुद्र से ऊपर दिखाया क्षत्रिय ने अपने आप को व्यवसायी से ऊपर दिखाया

उस सब के पश्चात समाज में जाति के नाम पर अन्याय होने लगा जो अपने आप को बड़ा समझ रहे थे वह जिन्हें छोटे समझते थे उनके साथ अन्याय करने लगे

प्रकार यह एक गंदी व्यवस्था हमारे समाज के साथ शामिल हो गई

परंतु जब आज हम 21वीं सदी में है तो हम सब को एक दूसरे को ही आश्वस्त करवाना पड़ेगा कि हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं एक दूसरे के साथ रहना है

हमें सभी को समान अवसर देने चाहिए

जाति के आधार पर भेदभाव करना ना केवल लोकतंत्र के बल्कि मानवता के भी खिलाफ है

देश को फिर से विश्व गुरु बनाने के लिए हमें समाज के अंदर जो जातीय विद्वेष फैला हुआ है हमें उसे समाप्त करना होगा

पिछङे लोगों को भी समान अवसर देकर हमें हम सब के बराबर लाना होगा

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